डॉ. एस.आर. रंगनाथन – भारतीय पुस्तकालय विज्ञान के जनक
पूरा नाम: (Shiyali Ramamrita Ranganathan)
जन्म: 12 अगस्त 1892, शियाली (अब सियाली/तिरुवरूर ज़िला), तमिलनाडु, भारत
मृत्यु: 27 सितंबर 1972, बेंगलुरु, कर्नाटक, भारत
पेशेवर पहचान: पुस्तकालय विज्ञान के प्रणेता, गणितज्ञ, शिक्षक, लेखक
सम्मान: पद्मश्री (1957)
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. रंगनाथन का जन्म 12 अगस्त 1892 को मद्रास प्रेसीडेंसी (वर्तमान तमिलनाडु) के छोटे से कस्बे शियाली में हुआ। उनके पिता का नाम रामामृतम् और माता का नाम श्रीरंगम्मा था। वे एक साधारण मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार से थे। बचपन से ही उनमें अध्ययन के प्रति गहरी रुचि और अनुशासनप्रियता थी।
उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल से प्राप्त की और 1913 में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से गणित में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद 1916 में उन्होंने एम.ए. (गणित) की उपाधि हासिल की। वे आगे चलकर गणित के प्राध्यापक भी बने।
शैक्षणिक और पेशेवर जीवन की शुरुआत
स्नातकोत्तर उपाधि के बाद उन्होंने विभिन्न कॉलेजों में गणित पढ़ाया, जैसे—
मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज
प्रेसिडेंसी कॉलेज, मद्रास
अमेरिकन कॉलेज, मदुरै
1924 में उनका जीवन मोड़ तब आया जब उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय का पहला पूर्णकालिक पुस्तकालयाध्यक्ष नियुक्त किया गया। पुस्तकालय के काम से अपरिचित होने के बावजूद उन्होंने इस क्षेत्र को अपनाया और लंदन के स्कूल ऑफ लाइब्रेरी एंड इंफॉर्मेशन स्टडीज से प्रशिक्षण लिया।
मुख्य योगदान
1. पुस्तकालय विज्ञान के पाँच नियम (1931)
रंगनाथन ने 1931 में पुस्तकालय संचालन और उपयोगिता के लिए पाँच मूलभूत नियम दिए:
1. Books are for use – पुस्तकें उपयोग के लिए हैं।
2. Every reader his/her book – प्रत्येक पाठक को उसकी पुस्तक मिले।
3. Every book its reader – प्रत्येक पुस्तक के लिए उसका पाठक हो।
4. Save the time of the reader – पाठक का समय बचाएँ।
5. The library is a growing organism – पुस्तकालय एक जीवित संगठन है।
ये नियम आज भी विश्वभर के पुस्तकालय विज्ञान के मूल सिद्धांत माने जाते हैं।
2. कोलन वर्गीकरण पद्धति (Colon Classification)
उन्होंने 1933 में Colon Classification System विकसित की, जिसमें विषयों को मुख्य वर्ग, उपवर्ग, और विशेषताओं के आधार पर कॉलन (:) का उपयोग करके वर्गीकृत किया जाता है। यह भारत सहित कई देशों में अपनाई गई।
3. संस्थागत और शैक्षिक योगदान
भारत में पुस्तकालय विज्ञान की औपचारिक शिक्षा की शुरुआत की।
मद्रास विश्वविद्यालय में पहला पुस्तकालय विज्ञान विभाग स्थापित किया।
भारतीय पुस्तकालय संघ (Indian Library Association) की स्थापना में सहयोग किया।
दिल्ली विश्वविद्यालय में डॉक्टरेट स्तर तक पुस्तकालय विज्ञान शिक्षा का ढांचा तैयार किया।
4. प्रमुख पुस्तकें
The Five Laws of Library Science (1931)
Prolegomena to Library Classification (1937)
Library Administration (1935)
Classification and Communication (1951)
Documentation and Its Facets (1963)
सम्मान और पुरस्कार
1957 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर IFLA (International Federation of Library Associations) द्वारा सम्मानित
1960 में लाइब्रेरी एसोसिएशन, लंदन की ओर से मानद सदस्यता।
निधन और विरासत
27 सितंबर 1972 को बेंगलुरु में उनका निधन हुआ। उनकी स्मृति में 12 अगस्त को राष्ट्रीय पुस्तकालय दिवस (National Librarian’s Day) के रूप में मनाया जाता है।
आज भी उनके सिद्धांत, नियम और वर्गीकरण पद्धति भारत तथा विश्व के अनेक देशों के पुस्तकालयों में लागू हैं।
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