Thursday, November 14, 2024

LIBRARY WEEK, DAY 01, (14/11/2024) POST

झलकारी बाई: एक साहसी वीरांगना

झलकारी बाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अद्वितीय योद्धा थीं, जिनका नाम साहस, समर्पण और नारी शक्ति का प्रतीक है। वे रानी लक्ष्मीबाई की महिला सेना, "दुर्गा दल," की प्रमुख सदस्य थीं और उन्होंने झाँसी की रक्षा के लिए अंग्रेजों के खिलाफ वीरतापूर्ण संघर्ष किया।

प्रारंभिक जीवन

झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर 1830 को उत्तर प्रदेश के झाँसी के समीप भोजला गाँव में एक निर्धन but स्वाभिमानी कोली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सदोवर सिंह और माता का नाम जमुना देवी था। बचपन से ही झलकारी बाई में अद्भुत साहस और वीरता थी। वे घुड़सवारी, तलवारबाजी, और निशानेबाजी में निपुण थीं। उनकी इन क्षमताओं ने उन्हें बचपन से ही अन्य महिलाओं से अलग बनाया।

रानी लक्ष्मीबाई की सेना में भूमिका

झलकारी बाई की रानी लक्ष्मीबाई से पहली मुलाकात उनके विवाह के बाद हुई। उनकी बहादुरी और युद्ध कौशल से प्रभावित होकर रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें अपनी महिला सेना "दुर्गा दल" में एक प्रमुख स्थान दिया। झलकारी बाई और रानी लक्ष्मीबाई के चेहरे की अद्भुत समानता ने युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण रणनीति के रूप में काम किया।

1857 का विद्रोह और झाँसी का संघर्ष

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान झाँसी पर अंग्रेजों ने आक्रमण किया। इस कठिन समय में झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई का भरपूर साथ दिया। जब अंग्रेज किला जीतने के करीब थे, तब झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई की जगह ली और दुश्मन का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने स्वयं को रानी लक्ष्मीबाई के रूप में प्रस्तुत कर दुश्मन सेना को भ्रमित कर दिया। इस साहसी कदम ने रानी लक्ष्मीबाई को सुरक्षित निकलने का समय दिया।

झलकारी बाई का बलिदान

झलकारी बाई ने झाँसी की स्वतंत्रता के लिए अंत तक संघर्ष किया। उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर यह साबित कर दिया कि नारी शक्ति किसी भी कठिन परिस्थिति का सामना करने में सक्षम है। उनके बलिदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और महिलाओं के अदम्य साहस को उजागर किया।

विरासत और सम्मान

झलकारी बाई को भारतीय इतिहास में उनकी वीरता और बलिदान के लिए हमेशा याद किया जाता है। झाँसी में उनकी स्मृति में एक स्मारक बनाया गया है। उनकी जयंती पर विभिन्न आयोजन होते हैं, जो उनकी वीरता और नारी सशक्तिकरण को प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष

झलकारी बाई केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि नारी शक्ति का प्रतीक थीं। उनका जीवन हमें साहस, त्याग और देशभक्ति का संदेश देता है। उनके योगदान को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। झलकारी बाई जैसी वीरांगनाएँ हमें यह सिखाती हैं कि अपने अधिकारों और देश की रक्षा के लिए हमें किसी भी कठिनाई का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।




 

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