Monday, December 2, 2024

साहसी क्रांतिकारी खुदीराम बोस की जीवनी [ लाइब्रेरी ब्लॉग पोस्ट 03/12/2024]

 खुदीराम बोस की जीवनी


खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल के मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे युवा और साहसी क्रांतिकारियों में से एक थे। उनके पिता त्रैलोक्यनाथ बोस और माता लक्ष्मीप्रिया देवी साधारण ब्राह्मण परिवार से थे। बचपन में ही उनके माता-पिता का निधन हो गया, जिसके बाद उनकी बहन ने उनका पालन-पोषण किया।


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा


खुदीराम बोस का झुकाव बचपन से ही देशभक्ति की ओर था। वे स्कूली शिक्षा के दौरान ही क्रांतिकारी गतिविधियों में रुचि लेने लगे थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन के अन्याय और अत्याचार को करीब से देखा, जिससे उनके मन में स्वतंत्रता के प्रति तीव्र इच्छा जाग्रत हुई।


क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत


खुदीराम बोस मात्र 15 वर्ष की आयु में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। उन्होंने अनुशीलन समिति नामक क्रांतिकारी संगठन की सदस्यता ली। उनका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह करना था। खुदीराम ने अंग्रेजों के खिलाफ पर्चे बांटे और जनजागरण में भाग लिया।


1908 में, खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने अंग्रेज मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की हत्या की योजना बनाई। किंग्सफोर्ड अपने कठोर और अन्यायपूर्ण फैसलों के लिए कुख्यात था। उन्होंने 30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर में किंग्सफोर्ड की गाड़ी पर बम फेंका, लेकिन गाड़ी में किंग्सफोर्ड के बजाय दो अन्य ब्रिटिश महिलाएं थीं, जो हादसे में मारी गईं।


गिरफ्तारी और शहादत


घटना के बाद खुदीराम और प्रफुल्ल भाग गए। हालांकि, प्रफुल्ल ने गिरफ्तारी से बचने के लिए खुद को गोली मार ली। खुदीराम को कुछ दिनों बाद वानी रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी उम्र उस समय केवल 18 वर्ष थी।


खुदीराम पर हत्या का मुकदमा चलाया गया। उन्होंने अदालत में अपना अपराध स्वीकार किया और इसे अपने देश के प्रति कर्तव्य बताया। 11 अगस्त 1908 को उन्हें फांसी की सजा दी गई। उनकी शहादत के समय वे मात्र 18 वर्ष, 8 महीने और 8 दिन के थे।


विरासत


खुदीराम बोस की शहादत ने पूरे देश को झकझोर दिया और युवाओं में स्वतंत्रता के प्रति अदम्य जोश भरा। उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक माना जाता है। उनकी वीरता और त्याग आज भी प्रेरणादायक है।


खुदीराम बोस का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के स्वर्णिम पन्नों में अमर है। उनका बलिदान न केवल युवाओं को प्रेरित करता है, बल्कि स्वतंत्रता की कीमत और इसके लिए किए गए संघर्ष को भी याद दिलाता है।

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