जब दुनिया कहती है कि उम्र बढ़ने पर कदम धीमे हो जाते हैं, तब मीनाक्षी अम्मा इस सोच को अपने साहस और संकल्प से झुठला देती हैं। 75 साल की उम्र में भी वो भारत की प्राचीन मार्शल आर्ट कलारीपयट्टू की सबसे वरिष्ठ और प्रेरणादायक गुरू हैं।
सात साल की उम्र में अपने पिता के साथ पहली बार जब उन्होंने कलारी देखा, तभी से यह कला उनके जीवन का हिस्सा बन गई। उस दौर में लड़कियों को इसे सीखने की अनुमति नहीं थी, लेकिन मीनाक्षी अम्मा ने परंपराओं को तोड़ते हुए न केवल खुद सीखा, बल्कि इसे आगे बढ़ाने का संकल्प भी लिया।
आज उनके गुरुकुल में 150 से अधिक छात्र, बिना किसी भेदभाव के इस प्राचीन विद्या को सीखते हैं — लड़के हों या लड़कियाँ। उनके लिए यह सिर्फ एक युद्ध कला नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास का मार्ग है।
शादी के बाद भी उन्होंने अभ्यास नहीं छोड़ा, भले ही समाज के डर से यह अभ्यास दरवाज़ों के पीछे करना पड़ा हो। उनके पति का सपना था कि यह विद्या हर जाति, लिंग और वर्ग तक पहुँचे — और मीनाक्षी अम्मा उसी सपने को साकार कर रही हैं।
आज, उन्हें 'पद्म श्री' से सम्मानित किया जा चुका है, लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान तब होता है, जब उनका हर शिष्य खुद को मजबूत और सक्षम महसूस करता है।
60 से अधिक प्रदर्शन, अटूट ऊर्जा और अडिग हौसला — मीनाक्षी अम्मा आज भी दिखा रही हैं कि सीमाएं तो सिर्फ सोच की होती हैं।
सलाम है मीनाक्षी अम्मा, आपके हौसले, समर्पण और प्रेरणा को। 🙏🌟
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