Friday, November 15, 2024

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भगवान बिरसा मुंडा: एक संक्षिप्त जीवन परिचय

भगवान बिरसा मुंडा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और जनजातीय समुदाय के प्रेरणास्रोत थे। उनका जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के छोटा नागपुर क्षेत्र में उलीहातू गाँव में हुआ था। वे मुंडा जनजाति से संबंधित थे, जो झारखंड और उसके आसपास के क्षेत्रों में निवास करती है। बिरसा मुंडा ने अपने छोटे से जीवन में आदिवासी समाज के उत्थान और ब्रिटिश साम्राज्य के शोषण के खिलाफ आंदोलन छेड़कर इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी।

प्रारंभिक जीवन

बिरसा का बचपन गरीबी और संघर्षों से भरा था। उनके माता-पिता, सुगना मुंडा और करमी हातू, कृषि और पशुपालन के माध्यम से अपनी जीविका चलाते थे। बचपन में बिरसा ने पारंपरिक आदिवासी जीवन और संस्कृति को निकटता से देखा। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा सलगा गाँव के एक स्थानीय स्कूल में प्राप्त की और बाद में चाईबासा में पढ़ाई की।

सामाजिक और धार्मिक सुधारक

बिरसा मुंडा न केवल एक क्रांतिकारी नेता थे, बल्कि सामाजिक और धार्मिक सुधारक भी थे। उन्होंने आदिवासी समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों, और बाहरी प्रभावों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने जनजातीय समाज को उनके पारंपरिक मूल्यों और संस्कृति की ओर लौटने के लिए प्रेरित किया। बिरसा ने "बिरसाइत" नामक एक धार्मिक आंदोलन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आदिवासी समाज को स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाना था।

ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष

बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के अत्याचार, भूमि छीनने की नीतियों, और वन अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ "उलगुलान" (महान विद्रोह) का नेतृत्व किया। उन्होंने आदिवासियों को संगठित किया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन छेड़ा। उनका मानना था कि आदिवासी भूमि पर सिर्फ आदिवासियों का अधिकार है और बाहरी ताकतों को इसे हड़पने का कोई हक नहीं।

उलगुलान आंदोलन

1899-1900 के दौरान बिरसा के नेतृत्व में "उलगुलान" आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत को हिला कर रख दिया। उन्होंने आदिवासियों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया और उन्हें आत्मसम्मान का महत्व समझाया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को आदिवासी भूमि अधिनियम जैसे कानून बनाने के लिए मजबूर किया।

मृत्यु

बिरसा मुंडा का जीवन बहुत छोटा था। उन्हें 1900 में गिरफ्तार कर लिया गया और 9 जून 1900 को रांची की जेल में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के कारणों पर आज भी सवाल उठाए जाते हैं।

विरासत और सम्मान

बिरसा मुंडा का जीवन आज भी आदिवासी समुदाय और पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है। झारखंड राज्य की स्थापना के साथ ही उनके जन्मदिन, 15 नवंबर, को "झारखंड स्थापना दिवस" के रूप में मनाया जाता है। उन्हें "धरती आबा" यानी "धरती पिता" के नाम से भी जाना जाता है।

निष्कर्ष

भगवान बिरसा मुंडा ने अपने अदम्य साहस, नेतृत्व और बलिदान से न केवल आदिवासी समाज, बल्कि पूरे भारत को गर्व करने का अवसर दिया। उनका जीवन संघर्ष, स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।






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