Wednesday, November 20, 2024

LIBRARY WEEK, DAY 07, Date (20/11/24), POST

 छत्तीसगढ़ में अनेक प्रमुख अभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यान हैं, जो जैव विविधता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध हैं। इनमें से प्रमुख अभ्यारण्य निम्नलिखित हैं:

1. अचानकमार अभ्यारण्य (बिलासपुर)

यह एक बाघ संरक्षण क्षेत्र है और सतपुड़ा की पहाड़ियों में स्थित है।

2. उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व (गरियाबंद)

यह विशेष रूप से दुर्लभ जंगली भैंस (वन्य भैंसा) के लिए प्रसिद्ध है।

3. बारनवापारा अभ्यारण्य (महासमुंद)

इस अभ्यारण्य में चीतल, सांभर, और तेंदुआ जैसे जीव पाए जाते हैं।

4. गुरु घासीदास (संजय) राष्ट्रीय उद्यान (कोरिया)

यह मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है और बाघों के लिए जाना जाता है।

5. भोरमदेव अभ्यारण्य (कवर्धा)

इसे "छत्तीसगढ़ का खजुराहो" भी कहा जाता है और यह समृद्ध वनस्पति के लिए प्रसिद्ध है।

6. सिहावा अभ्यारण्य (धमतरी)

यह अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य और जल स्रोतों के लिए जाना जाता है।

7. तमोर पिंगला अभ्यारण्य (सरगुजा)

यहाँ विविध प्रकार की वनस्पतियाँ और जीव जंतु पाए जाते हैं।

8. सेमरसोत अभ्यारण्य (सरगुजा)

यह क्षेत्र हाथी और अन्य वन्य जीवों के लिए जाना जाता है।

छत्तीसगढ़ के ये अभ्यारण्य राज्य की जैव विविधता को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं​​​​।


Tuesday, November 19, 2024

LIBRARY WEEK, DAY 06, Date (19/11/24) POST

 



तिजन बाई की जीवनी

तिजन बाई छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध लोककला पंडवानी की गायिका हैं, जिन्होंने अपनी कला को विश्वभर में पहचान दिलाई। उनका जन्म 24 अप्रैल 1956 को भिलाई के गनियारी गाँव में हुआ। एक गरीब परिवार में जन्मी तिजन बाई को महाभारत की कहानियों में बचपन से रुचि थी। उनके नाना, ब्रजलाल कोसरिया, ने उन्हें पंडवानी कला से परिचित कराया।


पंडवानी में महाभारत की कहानियों को संगीत और अभिनय के साथ प्रस्तुत किया जाता है। उस समय इस कला में महिलाओं का शामिल होना असामान्य था, लेकिन तिजन बाई ने समाज के विरोधों के बावजूद इसे अपनाया। उन्होंने "कपिला शैली" में खड़े होकर गायन करना शुरू किया और 13 वर्ष की उम्र में पहला सार्वजनिक प्रदर्शन किया।


तिजन बाई की सशक्त आवाज़, गहराई और अभिनय ने उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उन्होंने कई देशों में अपनी प्रस्तुति दी। उन्हें पद्मश्री (1988), पद्मभूषण (2003), और पद्मविभूषण (2019) सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले।


तिजन बाई का जीवन संघर्ष, साहस, और सफलता की मिसाल है। उन्होंने पंडवानी को नई ऊँचाई दी और छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति को वैश्विक मंच पर पहुँचाया।

Monday, November 18, 2024

LIBRARY WEEK, DAY 05, Date (18/11/24) POST

 छत्तीसगढ़ के पाँच प्रसिद्ध पद्मश्री सम्मान प्राप्तकर्ताओं के नाम, उनके योगदान और पुरस्कार प्राप्त करने का वर्ष निम्नलिखित हैं:

1. दुर्गा प्रसाद चौधरी (1973)

योगदान: छत्तीसगढ़ी लोकसंगीत और कला में अद्वितीय योगदान।

दुर्गा प्रसाद चौधरी ने छत्तीसगढ़ी लोकसंगीत को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।

2. तेजकुमार सिंह (2016)

योगदान: लोकनृत्य और छत्तीसगढ़ी संस्कृति का संरक्षण।

इन्होंने पंथी नृत्य और सतनाम संस्कृति के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

3. मोहम्मद शरीफ (2020)

योगदान: सामाजिक कार्य।

इन्होंने हजारों अनजान और लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर मानवीय सेवा का अनूठा उदाहरण पेश किया।

4. जितेंद्र हरीशचंद्र राठौर (2021)

योगदान: जैविक खेती और पर्यावरण संरक्षण।

इन्होंने छत्तीसगढ़ में जैविक खेती को बढ़ावा देकर किसानों को नई दिशा दी।

5. डॉ. सुभाष मोहंती (2022)

योगदान: चिकित्सा और अनुसंधान।

डॉ. मोहंती ने सिकल सेल एनीमिया के इलाज और जागरूकता के लिए उल्लेखनीय काम किया।

ये सभी सम्मानित व्यक्ति छत्तीसगढ़ के गौरव हैं और उनके योगदान ने राज्य को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।


Sunday, November 17, 2024

LIBRARY WEEK, DAY 04, Date (17/11/24) POST

 यहाँ छत्तीसगढ़ की पाँच महान हस्तियों की जीवनी का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:

1. पंडित रविशंकर शुक्ल

  • परिचय: पंडित रविशंकर शुक्ल छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री थे और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता।
  • जन्म: 2 अगस्त 1877, सागर, मध्य प्रदेश।
  • योगदान: स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका, शिक्षण क्षेत्र में सुधार, और छत्तीसगढ़ के विकास के लिए उनके प्रयास।
  • महत्व: रायपुर विश्वविद्यालय (अब पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय) उनके नाम पर स्थापित है।

2. मिनिमाता

  • परिचय: मिनिमाता भारत की पहली महिला सांसदों में से एक और सामाजिक सुधारक थीं।
  • जन्म: 1913, असम।
  • योगदान: समाज में महिलाओं और दलितों के उत्थान के लिए काम किया।
  • महत्व: छत्तीसगढ़ में मिनिमाता के नाम पर अनेक योजनाएं और संस्थान स्थापित हैं।

3. स्वामी विवेकानंद

  • परिचय: स्वामी विवेकानंद का छत्तीसगढ़ के रायपुर में बचपन बीता। वे महान संत और भारतीय संस्कृति के प्रचारक थे।
  • जन्म: 12 जनवरी 1863, कोलकाता।
  • योगदान: भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने में अहम भूमिका।
  • महत्व: रायपुर में स्वामी विवेकानंद के नाम पर हवाई अड्डा और स्मारक हैं।

4. पंडित सुंदरलाल शर्मा

  • परिचय: छत्तीसगढ़ के गांधी के रूप में प्रसिद्ध, पंडित सुंदरलाल शर्मा स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार में अग्रणी थे।
  • जन्म: 21 दिसंबर 1881, राजिम।
  • योगदान: अस्पृश्यता और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया।
  • महत्व: उनके नाम पर छत्तीसगढ़ में विश्वविद्यालय और अन्य संस्थान हैं।

5. हबीब तनवीर

  • परिचय: हबीब तनवीर छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध नाट्यकार और निर्देशक थे।
  • जन्म: 1 सितंबर 1923, रायपुर।
  • योगदान: छत्तीसगढ़ी संस्कृति और लोकनाट्य को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान दिलाई।
  • महत्व: "चरनदास चोर" उनकी प्रसिद्ध नाट्य कृति है।

Saturday, November 16, 2024

LIBRARY WEEK, DAY 03, Date (16/11/24) POST


छत्तीसगढ़ राज्य में कथक नृत्य में रायगढ़ राजघराने का योगदान

छत्तीसगढ़ का रायगढ़ राजघराना भारतीय शास्त्रीय नृत्य और संगीत के क्षेत्र में अपनी अनूठी पहचान रखता है। विशेष रूप से कथक नृत्य के विकास और संरक्षण में रायगढ़ राजघराने का योगदान अद्वितीय और अविस्मरणीय है। इस राजघराने ने छत्तीसगढ़ को सांस्कृतिक और कलात्मक रूप से समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कथक नृत्य और रायगढ़ राजघराना

कथक नृत्य उत्तर भारत की एक प्रमुख शास्त्रीय नृत्य शैली है, जिसमें नृत्य, भाव, और कथावाचन का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। रायगढ़ राजघराने ने इस नृत्य शैली को न केवल संरक्षण दिया, बल्कि इसे प्रोत्साहित कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।

रायगढ़ राजघराने के प्रमुख योगदान

  1. नृत्य और संगीत का संरक्षण:
    रायगढ़ राजघराने के महाराजा चक्रधर सिंह (1905–1947) का योगदान कथक नृत्य के क्षेत्र में सबसे उल्लेखनीय है। उन्होंने न केवल कथक को संरक्षित किया, बल्कि इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। महाराजा चक्रधर सिंह स्वयं एक कुशल कथक नर्तक, संगीतज्ञ, और विद्वान थे। उन्होंने कथक नृत्य के साथ-साथ तबला, पखावज, और संगीत में भी अपना योगदान दिया।

  2. नई संरचनाओं का विकास:
    महाराजा चक्रधर सिंह ने कथक नृत्य में नई संरचनाओं और बंदिशों को जोड़ा। उन्होंने कथक में तबले और पखावज के तालों के प्रयोग को और समृद्ध किया, जिससे यह नृत्य शैली और अधिक प्रभावशाली बनी।

  3. कथक गुरु और कलाकारों का समर्थन:
    रायगढ़ राजघराने ने देश भर के प्रमुख कथक गुरुओं और कलाकारों को संरक्षण दिया। राजघराने के सहयोग से कथक नृत्य का अध्ययन और अभ्यास करने के लिए देशभर से कई कलाकार रायगढ़ आए।

  4. संगीत और नृत्य की शिक्षा:
    महाराजा चक्रधर सिंह ने रायगढ़ में संगीत और नृत्य की शिक्षा को बढ़ावा दिया। उनके प्रयासों से रायगढ़ संगीत घराना अस्तित्व में आया, जो आज भी अपनी परंपरा और समृद्धि के लिए प्रसिद्ध है।

  5. चक्रधर सम्मान:
    रायगढ़ राजघराने की संस्कृति और कला के प्रति प्रतिबद्धता को सम्मानित करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने "चक्रधर सम्मान" की स्थापना की। यह पुरस्कार भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य में उत्कृष्ट योगदान देने वाले कलाकारों को प्रदान किया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय पहचान

रायगढ़ राजघराने ने कथक नृत्य को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी प्रस्तुत किया। उनके प्रयासों से इस नृत्य शैली को न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी ख्याति मिली।

निष्कर्ष

रायगढ़ राजघराने का योगदान कथक नृत्य के क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस कला को संरक्षित किया, इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और इसे भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने का प्रयास किया। रायगढ़ राजघराना आज भी छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।



Friday, November 15, 2024

LIBRARY WEEK, DAY 02, (15/11/24) POST

भगवान बिरसा मुंडा: एक संक्षिप्त जीवन परिचय

भगवान बिरसा मुंडा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और जनजातीय समुदाय के प्रेरणास्रोत थे। उनका जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के छोटा नागपुर क्षेत्र में उलीहातू गाँव में हुआ था। वे मुंडा जनजाति से संबंधित थे, जो झारखंड और उसके आसपास के क्षेत्रों में निवास करती है। बिरसा मुंडा ने अपने छोटे से जीवन में आदिवासी समाज के उत्थान और ब्रिटिश साम्राज्य के शोषण के खिलाफ आंदोलन छेड़कर इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी।

प्रारंभिक जीवन

बिरसा का बचपन गरीबी और संघर्षों से भरा था। उनके माता-पिता, सुगना मुंडा और करमी हातू, कृषि और पशुपालन के माध्यम से अपनी जीविका चलाते थे। बचपन में बिरसा ने पारंपरिक आदिवासी जीवन और संस्कृति को निकटता से देखा। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा सलगा गाँव के एक स्थानीय स्कूल में प्राप्त की और बाद में चाईबासा में पढ़ाई की।

सामाजिक और धार्मिक सुधारक

बिरसा मुंडा न केवल एक क्रांतिकारी नेता थे, बल्कि सामाजिक और धार्मिक सुधारक भी थे। उन्होंने आदिवासी समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों, और बाहरी प्रभावों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने जनजातीय समाज को उनके पारंपरिक मूल्यों और संस्कृति की ओर लौटने के लिए प्रेरित किया। बिरसा ने "बिरसाइत" नामक एक धार्मिक आंदोलन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आदिवासी समाज को स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाना था।

ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष

बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के अत्याचार, भूमि छीनने की नीतियों, और वन अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ "उलगुलान" (महान विद्रोह) का नेतृत्व किया। उन्होंने आदिवासियों को संगठित किया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन छेड़ा। उनका मानना था कि आदिवासी भूमि पर सिर्फ आदिवासियों का अधिकार है और बाहरी ताकतों को इसे हड़पने का कोई हक नहीं।

उलगुलान आंदोलन

1899-1900 के दौरान बिरसा के नेतृत्व में "उलगुलान" आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत को हिला कर रख दिया। उन्होंने आदिवासियों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया और उन्हें आत्मसम्मान का महत्व समझाया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को आदिवासी भूमि अधिनियम जैसे कानून बनाने के लिए मजबूर किया।

मृत्यु

बिरसा मुंडा का जीवन बहुत छोटा था। उन्हें 1900 में गिरफ्तार कर लिया गया और 9 जून 1900 को रांची की जेल में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के कारणों पर आज भी सवाल उठाए जाते हैं।

विरासत और सम्मान

बिरसा मुंडा का जीवन आज भी आदिवासी समुदाय और पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है। झारखंड राज्य की स्थापना के साथ ही उनके जन्मदिन, 15 नवंबर, को "झारखंड स्थापना दिवस" के रूप में मनाया जाता है। उन्हें "धरती आबा" यानी "धरती पिता" के नाम से भी जाना जाता है।

निष्कर्ष

भगवान बिरसा मुंडा ने अपने अदम्य साहस, नेतृत्व और बलिदान से न केवल आदिवासी समाज, बल्कि पूरे भारत को गर्व करने का अवसर दिया। उनका जीवन संघर्ष, स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।






Thursday, November 14, 2024

LIBRARY WEEK, DAY 01, (14/11/2024) POST

झलकारी बाई: एक साहसी वीरांगना

झलकारी बाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अद्वितीय योद्धा थीं, जिनका नाम साहस, समर्पण और नारी शक्ति का प्रतीक है। वे रानी लक्ष्मीबाई की महिला सेना, "दुर्गा दल," की प्रमुख सदस्य थीं और उन्होंने झाँसी की रक्षा के लिए अंग्रेजों के खिलाफ वीरतापूर्ण संघर्ष किया।

प्रारंभिक जीवन

झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर 1830 को उत्तर प्रदेश के झाँसी के समीप भोजला गाँव में एक निर्धन but स्वाभिमानी कोली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सदोवर सिंह और माता का नाम जमुना देवी था। बचपन से ही झलकारी बाई में अद्भुत साहस और वीरता थी। वे घुड़सवारी, तलवारबाजी, और निशानेबाजी में निपुण थीं। उनकी इन क्षमताओं ने उन्हें बचपन से ही अन्य महिलाओं से अलग बनाया।

रानी लक्ष्मीबाई की सेना में भूमिका

झलकारी बाई की रानी लक्ष्मीबाई से पहली मुलाकात उनके विवाह के बाद हुई। उनकी बहादुरी और युद्ध कौशल से प्रभावित होकर रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें अपनी महिला सेना "दुर्गा दल" में एक प्रमुख स्थान दिया। झलकारी बाई और रानी लक्ष्मीबाई के चेहरे की अद्भुत समानता ने युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण रणनीति के रूप में काम किया।

1857 का विद्रोह और झाँसी का संघर्ष

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान झाँसी पर अंग्रेजों ने आक्रमण किया। इस कठिन समय में झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई का भरपूर साथ दिया। जब अंग्रेज किला जीतने के करीब थे, तब झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई की जगह ली और दुश्मन का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने स्वयं को रानी लक्ष्मीबाई के रूप में प्रस्तुत कर दुश्मन सेना को भ्रमित कर दिया। इस साहसी कदम ने रानी लक्ष्मीबाई को सुरक्षित निकलने का समय दिया।

झलकारी बाई का बलिदान

झलकारी बाई ने झाँसी की स्वतंत्रता के लिए अंत तक संघर्ष किया। उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर यह साबित कर दिया कि नारी शक्ति किसी भी कठिन परिस्थिति का सामना करने में सक्षम है। उनके बलिदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और महिलाओं के अदम्य साहस को उजागर किया।

विरासत और सम्मान

झलकारी बाई को भारतीय इतिहास में उनकी वीरता और बलिदान के लिए हमेशा याद किया जाता है। झाँसी में उनकी स्मृति में एक स्मारक बनाया गया है। उनकी जयंती पर विभिन्न आयोजन होते हैं, जो उनकी वीरता और नारी सशक्तिकरण को प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष

झलकारी बाई केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि नारी शक्ति का प्रतीक थीं। उनका जीवन हमें साहस, त्याग और देशभक्ति का संदेश देता है। उनके योगदान को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। झलकारी बाई जैसी वीरांगनाएँ हमें यह सिखाती हैं कि अपने अधिकारों और देश की रक्षा के लिए हमें किसी भी कठिनाई का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।




 

LIBRARY WEEK NOVEMBER 14-21 ,2024

 


सुभाष चंद्र बोस की जीवनी

  सुभाष चंद्र बोस की जीवनी सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें "नेताजी" के नाम से भी जाना जाता है, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता ...